विनायक दामोदर सावरकर जीवन वृत्त | Vinayak Damodar Savarkar in marathi

                     * विनायक दामोदर सावरकर *



विनायक दामोदर सावरकर
जन्म 28 मई 1883
ग्राम भागुर, जिला नासिक बम्बई प्रान्त ब्रिटिश भारत
मृत्यु फ़रवरी 26, 1966 (उम्र 82)
बम्बई,  भारत
मृत्यु का कारण 
इच्छामृत्यु यूथेनेशिया प्रायोपवेशनम्त्त





सल्लेखन
राष्ट्रीयता भारतीय
अन्य नाम वीर सावरकर
शिक्षा कला स्नातक, फर्ग्युसन कॉलिज, पुणे बार एट ला लन्दन
प्रसिद्धि कारण भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन, हिन्दुत्व
राजनैतिक पार्टी अखिल भारतीय हिन्दू महासभा
धार्मिक मान्यता हिन्दू नास्तिक[1][2]
जीवनसाथी यमुनाबाई
बच्चे 
पुत्र: प्रभाकर (अल्पायु में मृत्यु)
एवं विश्वास सावरकर,

पुत्री: प्रभात चिपलूणकर
विनायक दामोदर सावरकर (जन्म: २८ मई १८८३ - मृत्यु: २६ फ़रवरी १९६६)[3] भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है। वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने १८५७ के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था[4]।







 जीवन वृत्त

विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (तत्कालीन नाम बम्बई) प्रान्त में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। जब वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। इसके सात वर्ष बाद सन् १८९९ में प्लेग की महामारी में उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधारे। इसके बाद विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य सँभाला। दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा। विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से १९०१ में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वे पढ़ाकू तो थे ही अपितु उन दिनों उन्होंने कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। इस अवधि में विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके मित्र मेलों का आयोजन किया। शीघ्र ही इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जाग उठी।[4] सन् १९०१ में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। १९०२ में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी०ए० किया।

लन्दन प्रवास
१९०४ में उन्हॊंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की। १९०५ में बंगाल के विभाजन के बाद उन्होने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे। बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर १९०६ में उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली। इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवार नामक पत्रिकाओं में उनके अनेक लेख प्रकाशित हुये, जो बाद में कलकत्ता के युगान्तर पत्र में भी छपे। सावरकर रूसी क्रान्तिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे।[4]१० मई, १९०७ को इन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई। इस अवसर पर विनायक सावरकर ने अपने ओजस्वी भाषण में प्रमाणों सहित १८५७ के संग्राम को गदर नहीं, अपितु भारत के स्वातन्त्र्य का प्रथम संग्राम सिद्ध किया।[5] जून, १९०८ में इनकी पुस्तक द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस : १८५७ तैयार हो गयी परन्त्तु इसके मुद्रण की समस्या आयी। इसके लिये लन्दन से लेकर पेरिस और जर्मनी तक प्रयास किये गये किन्तु वे सभी प्रयास असफल रहे। बाद में यह पुस्तक किसी प्रकार गुप्त रूप से हॉलैंड से प्रकाशित हुई और इसकी प्रतियाँ फ्रांस पहुँचायी गयीं[5]। इस पुस्तक में सावरकर ने १८५७ के सिपाही विद्रोह को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतन्त्रता की पहली लड़ाई बताया। मई १९०९ में इन्होंने लन्दन से बार एट ला (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु उन्हें वहाँ वकालत करने की अनुमति नहीं मिली।

लाला हरदयाल से भेंट
लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। १ जुलाई १९०९ को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। १३ मई १९१० को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु ८ जुलाई १९१० को एस०एस० मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले।[6] २४ दिसम्बर १९१० को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद ३१ जनवरी १९११ को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया[6]। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार -

"मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की।"[5]

सेलुलर जेल में

पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल के सामने वीर सावरकर की प्रतिमा
नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत इन्हें ७ अप्रैल, १९११ को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था।।[6] सावरकर ४ जुलाई, १९११ से २१ मई, १९२१ तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे।

स्वतन्त्रता संग्राम

१९२१ में मुक्त होने पर वे स्वदेश लौटे और फिर ३ साल जेल भोगी। जेल में उन्होंने हिंदुत्व पर शोध ग्रन्थ लिखा। इस बीच ७ जनवरी १९२५ को इनकी पुत्री, प्रभात का जन्म हुआ। मार्च, १९२५ में उनकी भॆंट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक, डॉ॰ हेडगेवार से हुई। १७ मार्च १९२८ को इनके बेटे विश्वास का जन्म हुआ। फरवरी, १९३१ में इनके प्रयासों से बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना हुई, जो सभी हिन्दुओं के लिए समान रूप से खुला था। २५ फ़रवरी १९३१ को सावरकर ने बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की[6]।

१९३७ में वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के कर्णावती (अहमदाबाद) में हुए १९वें सत्र के अध्यक्ष चुने गये, जिसके बाद वे पुनः सात वर्षों के लिये अध्यक्ष चुने गये। १५ अप्रैल १९३८ को उन्हें मराठी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। १३ दिसम्बर १९३७ को नागपुर की एक जन-सभा में उन्होंने अलग पाकिस्तान के लिये चल रहे प्रयासों को असफल करने की प्रेरणा दी थी[5]। २२ जून १९४१ को उनकी भेंट नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई। ९ अक्टूबर १९४२ को भारत की स्वतन्त्रता के निवेदन सहित उन्होंने चर्चिल को तार भेज कर सूचित किया। सावरकर जीवन भर अखण्ड भारत के पक्ष में रहे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के माध्यमों के बारे में गान्धी और सावरकर का एकदम अलग दृष्टिकोण था। १९४३ के बाद दादर, बम्बई में रहे। १६ मार्च १९४५ को इनके भ्राता बाबूराव का देहान्त हुआ। १९ अप्रैल १९४५ को उन्होंने अखिल भारतीय रजवाड़ा हिन्दू सभा सम्मेलन की अध्यक्षता की। इसी वर्ष ८ मई को उनकी पुत्री प्रभात का विवाह सम्पन्न हुआ। अप्रैल १९४६ में बम्बई सरकार ने सावरकर के लिखे साहित्य पर से प्रतिबन्ध हटा लिया। १९४७ में इन्होने भारत विभाजन का विरोध किया। महात्मा रामचन्द्र वीर नामक (हिन्दू महासभा के नेता एवं सन्त) ने उनका समर्थन किया।




स्वातन्त्र्योपरान्त जीवन


महात्मा गाँधी-हत्याकांड के अभियुक्तों का चित्र।
खड़े हुए : शंकर किस्तैया, गोपाल गौड़से, मदनलाल पाहवा, दिगम्बर बड़गे
बैठे हुए: नारायण आप्टे, वीर सावरकर, नाथूराम गोडसे, विष्णु रामकृष्ण करकरे
१५ अगस्त १९४७ को उन्होंने सावरकर सदान्तो में भारतीय तिरंगा एवं भगवा, दो-दो ध्वजारोहण किये। इस अवसर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने पत्रकारों से कहा कि मुझे स्वराज्य प्राप्ति की खुशी है, परन्तु वह खण्डित है, इसका दु:ख है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की सीमायें नदी तथा पहाड़ों या सन्धि-पत्रों से निर्धारित नहीं होतीं, वे देश के नवयुवकों के शौर्य, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम से निर्धारित होती हैं[5]। ५ फ़रवरी १९४८ को महात्मा गांधी की हत्या के उपरान्त उन्हें प्रिवेन्टिव डिटेन्शन एक्ट धारा के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। १९ अक्टूबर १९४९ को इनके अनुज नारायणराव का देहान्त हो गया। ४ अप्रैल १९५० को पाकिस्तानी प्रधान मंत्री लियाक़त अली ख़ान के दिल्ली आगमन की पूर्व संध्या पर उन्हें सावधानीवश बेलगाम जेल में रोक कर रखा गया। मई, १९५२ में पुणे की एक विशाल सभा में अभिनव भारत संगठन को उसके उद्देश्य (भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति) पूर्ण होने पर भंग किया गया। १० नवम्बर १९५७ को नई दिल्ली में आयोजित हुए, १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के शाताब्दी समारोह में वे मुख्य वक्ता रहे। ८ अक्टूबर १९५९ को उन्हें पुणे विश्वविद्यालय ने डी०.लिट० की मानद उपाधि से अलंकृत किया। ८ नवम्बर १९६३ को इनकी पत्नी यमुनाबाई चल बसीं। सितम्बर, १९६६ से उन्हें तेज ज्वर ने आ घेरा, जिसके बाद इनका स्वास्थ्य गिरने लगा। १ फ़रवरी १९६६ को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया। २६ फ़रवरी १९६६ को बम्बई में भारतीय समयानुसार प्रातः १० बजे उन्होंने पार्थिव शरीर छोड़कर परमधाम को प्रस्थान किया[6]।

सावरकर साहित्य

वीर सावरकर ने १०,००० से अधिक पन्ने मराठी भाषा में तथा १५०० से अधिक पन्ने अंग्रेजी में लिखा है।

'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस - १८५७' सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक है, जिसमें उन्होंने सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिख कर ब्रिटिश शासन को हिला डाला था। अधिकांश इतिहासकारों ने १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक सिपाही विद्रोह या अधिकतम भारतीय विद्रोह कहा था। दूसरी ओर भारतीय विश्लेषकों ने भी इसे तब तक एक योजनाबद्ध राजनीतिक एवं सैन्य आक्रमण कहा था, जो भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के ऊपर किया गया था।

इतिहास
१८५७ चे स्वातंत्र्यसमरजोडला)
भारतीय इतिहासातील सहा सोनेरी पाने
हिंदुपदपादशाही
कथा
सावरकरांच्या गोष्टी भाग - १
सावरकरांच्या गोष्टी भाग - २
उपन्यास
काळेपाणी
मोपल्यांचे बंड अर्थात्‌ मला काय त्याचे
आत्मचरित्र
माझी जन्मठेप
शत्रूच्या शिबिरात
अथांग (आत्मचरित्र पूर्वपीठिका)
हिंदुत्ववाद
हिंदुत्व
हिंदुराष्ट्र दर्शन
हिंदुत्वाचे पंचप्राण
लेखसंग्रह
मॅझिनीच्या आत्मचरित्राची प्रस्तावना - अनुवादित
गांधी गोंधळ
लंडनची बातमीपत्रे
गरमागरम चिवडा
तेजस्वी तारे
जात्युच्छेदक निबंध
विज्ञाननिष्ठ निबंध
स्फुट लेख
सावरकरांची राजकीय भाषणे
सावरकरांची सामाजिक भाषणे
नाटक
संगीत उ:शाप
संगीत संन्यस्त खड्‌ग
संगीत उत्तरक्रिया
बोधिसत्व- (अपूर्ण)
कविता
महाकाव्य

कमला
गोमांतक
विरहोच्छ्वास
सप्तर्षी
स्फुट काव्य

सावरकरांच्या कविता
पुस्तक एवं फिल्म


सावरकर पर भारत सरकार द्वारा जारी डाक-टिकट
जालस्थल
इनके जन्म की १२५वीं वर्षगांठ पर इनके ऊपर एक अलाभ जालस्थल आरंभ किया गया है। इसका संपर्क अधोलिखित काड़ियों मॆं दिया गया है।[3] इसमें इनके जीवन के बारे में विस्तृत ब्यौरा, डाउनलोड हेतु ऑडियो व वीडियो उपलब्ध हैं। यहां उनके द्वारा रचित १९२४ का दुर्लभ पाठ्य भी उपलब्ध है। यह जालस्थल २८ मई, २००७ को आरंभ हुआ था।



चलचित्र
१९५८ में एक हिन्दी फिल्म काला पानी (1958 फ़िल्म) बनी थी। जिसमें मुख्य भूमिकाएं देव आनन्द और मधुबाला ने की थीं। इसका निर्देशन राज खोसला ने किया था। इस फिल्म को १९५९ में दोफ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिले थे। इंटरनेट मूवी डाटाबेस पर काला पानी
१९९६ में मलयालम में प्रसिद्ध मलयाली फिल्म-निर्माता प्रियदर्शन द्वारा निर्देशित फिल्म काला पानी बनी थी। इस फिल्म में हिन्दी फिल्म अभिनेता अन्नू कपूर ने सावरकर का अभिनय किया था। इंटरनेट मूवी डाटाबेस पर सज़ा-ए-काला पानी
२००१ में वेद राही और सुधीर फड़के ने एक बायोपिक चलचित्र बनाया- वीर सावरकर। यह निर्माण के कई वर्षों के बाद रिलीज़ हुई। सावरकर का चरित्र इसमें शैलेन्द्र गौड़ ने किया है। [1], [2]
इनके नाम पर ही पोर्ट ब्लेयर के विमानक्षेत्र का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।
सामाजिक उत्थान


जीवन के अन्तिम समय में वीर सावरकर
सावरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक थे। उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं। उनके समय में समाज बहुत सी कुरीतियों और बेड़ियों के बंधनों में जकड़ा हुआ था। इस कारण हिन्दू समाज बहुत ही दुर्बल हो गया था। अपने भाषणों, लेखों व कृत्यों से इन्होंने समाज सुधार के निरंतर प्रयास किए। हालांकि यह भी सत्य है, कि सावरकर ने सामाजिक कार्यों में तब ध्यान लगाया, जब उन्हें राजनीतिक कलापों से निषेध कर दिया गया था। किंतु उनका समाज सुधार जीवन पर्यन्त चला। उनके सामाजिक उत्थान कार्यक्रम ना केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि राष्ट्र को समर्पित होते थे। १९२४ से १९३७ का समय इनके जीवन का समाज सुधार को समर्पित काल रहा।

सावरकर के अनुसार हिन्दू समाज सात बेड़ियों में जकड़ा हुआ था।।[6]

स्पर्शबंदी: निम्न जातियों का स्पर्श तक निषेध, अस्पृश्यता[7]
रोटीबंदी: निम्न जातियों के साथ खानपान निषेध[8][9]
बेटीबंदी: खास जातियों के संग विवाह संबंध निषेध[10]
व्यवसायबंदी: कुछ निश्चित व्यवसाय निषेध
सिंधुबंदी: सागरपार यात्रा, व्यवसाय निषेध
वेदोक्तबंदी: वेद के कर्मकाण्डों का एक वर्ग को निषेध
शुद्धिबंदी: किसी को वापस हिन्दूकरण पर निषेध
अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने बंदियों को शिक्षित करने का काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया। सावरकरजी हिंदू समाज में प्रचलित जाति-भेद एवं छुआछूत के घोर विरोधी थे। बंबई का पतितपावन मंदिर इसका जीवंत उदाहरण है, जो हिन्दू धर्म की प्रत्येक जाति के लोगों के लिए समान रूप से खुला है।।[5] पिछले सौ वर्षों में इन बंधनों से किसी हद तक मुक्ति सावरकर के ही अथक प्रयासों का परिणाम है।



मराठी पारिभाषिक शब्दावली में सावरकर का योगदान

भाषाशुद्धि का आग्रह धरकर सावरकर ने मराठी भाषा को अनेकों पारिभाषिक शब्द दिये, उनके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-

अर्थसंकल्प (बजेट)
उपस्थित (हाजिर)
क्रमांक (नंबर)
क्रीडांगण (ग्राउंड)!
गणसंख्या (कोरम)
गतिमान
चित्रपट (सिनेमा)
झरणी (फाऊन्टनपेन)
टपाल (पोस्ट)
तारण (मॉटर्गेज)
त्वर्य/त्वरित (अर्जेन्ट)
दिग्दर्शक (डायरेक्टर)
दिनांक (तारीख)
दूरदर्शन (टेलीविजन)
दूरध्वनी (टेलिफोन)
ध्वनिक्षेपक (लाऊड स्पीकर)



तीस वर्षांचा नवरा तुरूंगाच्या पलीकडे उभा आहे, जो पुढल्याच जन्मी बहुतेक भेटणार. आणि दाराच्या अलीकडे ही सव्वीस वर्षांची मुलगी उभी आहे, जिचा मुलगा ही आता ह्या सगळ्या गडबडीत वारला. ह्या दोघांनी एकत्र येऊन काय बोलावं..

सावरकरांनी एकच सांगितलं,

"माई, काटक्या एकत्र करायच्या आणि घरटं बांधायचं, त्या घरट्यात पोराबाळांची वीण वाढवायची ह्याला जर संसार म्हणायचा असेल तर हा संसार.. कावळे, चिमण्या सगळेच करतात. आपल्या घरट्या पुरता संसार कोणालाही करता येतो, 'आम्हांला देशाचा संसार करता आला यात धन्यता माना'. आणि जगामध्ये काहीतरी पेरल्याशिवाय काही उगवत नाहीच, वर ज्वारीचं कणीसच्या कणीस उभं रहावं, असं जर वाटतं असेल तर एका कणसाच्या दाण्याला जमिनीत गाडून घ्यावं लागतं. तो शेतात, मातीत मिळतो तेव्हा पुढचं धान्य येतं; मग हिंदुस्थानात पुढची चांगली घर निर्माण होण्यासाठी आपलं घर पेरायला नको का! कुठल्या तरी घरानं मातीत गेल्याशिवाय पुढचं चांगलं कसं उगवणार.

माई, कल्पना करा.. की आपण आपल्या हातानं आपली चूल बोळकी फोडून टाकली. आपल्या घराला आग लावली, तर हे पेरल्यामुळेच उद्या स्वतंत्र झालेल्या भारताच्या प्रत्येक घरातून आपल्याला सोन्याचा धूर बघायला मिळणार आहे. मग सगळ्यांच्या घरातून सोन्याचा धूर यावा, म्हणून आपण आपल्या घराचा धूर नको का करायला! वाईट वाटून घेऊ नका, एकाच जन्मात मी तुम्हाला एतका त्रास दिला की हाच पती जन्मोंजन्मी मिळावा असं तुम्ही म्हणावं तरी कसं.
पुन्हा ह्या जन्मी शक्य झालं तर भेटू, नाहीतर इथेच निरोप."

असं म्हटल्यानंतर ती सव्वीस वर्षांची - पंचवीस वर्षांची पोरगी अशी पटकन खाली बसत होे, त्या सुरुंगाच्या जाळीतून हात आत घालते सावरकरांच्या पायाला हात लावते. ती धूळ आपल्या मस्तकी लावते, सावरकरांनी एकच विचारलं माई काय करता.. त्या पंचवीस वर्षाच्या पोरीनं सुद्धा सांगितलं, "हे पाय बघून ठेवते पुढल्या जन्मी चुकायला नकोत म्हणून. आपल्या घराचे संसार करणारे खूप पाहिले, पण एवढा मोठा देशाचा संसार करणारा पुरुषोत्तम देवाने मला माझा नवरा म्हणून दिला, मला नाही वाईट वाटत त्याच.. मला नाही वाईट वाटत. तुम्ही जर सत्यवान असाल तर मी सावित्री आहे, माझ्या तपश़्चर्येनं यमापासून तुम्हाला मी परत आणिन याची शक्यता बाळगा. स्वतःच्या जीवाला जपा, आम्ही या ठिकाणी तुमची वाट पाहत राहू."

काय ताकद आहे हो, निरोप देण्यात काय ताकद आहे.





""स्वा. सावरकरांनी दिलेले ४५ मराठी शब्द""

दिनांक (तारीख)

क्रमांक (नंबर)

बोलपट (टॉकी)

नेपथ्य

वेशभूषा (कॉश्च्युम)

दिग्दर्शक (डायरेक्टर)

चित्रपट (सिनेमा)

मध्यंतर (इन्टर्व्हल)

उपस्थित (हजर)

प्रतिवृत्त (रिपोर्ट)

नगरपालिका (म्युन्सिपाल्टी)

महापालिका (कॉर्पोरेशन)

महापौर (मेयर)

पर्यवेक्षक ( सुपरवायझर)

विश्वस्त (ट्रस्टी)

त्वर्य/त्वरित (अर्जंट)

गणसंख्या (कोरम)

स्तंभ ( कॉलम)

मूल्य (किंमत)

शुल्क (फी)

हुतात्मा (शहीद)

निर्बंध (कायदा)

शिरगणती ( खानेसुमारी)

विशेषांक (खास अंक)

सार्वमत (प्लेबिसाइट)

झरणी (फाऊन्टनपेन)

नभोवाणी (रेडिओ)

दूरदर्शन (टेलिव्हिजन)

दूरध्वनी (टेलिफोन)

ध्वनिक्षेपक (लाउड स्पीकर)

विधिमंडळ ( असेम्ब्ली)

अर्थसंकल्प (बजेट)

क्रीडांगण (ग्राउंड)

प्राचार्य (प्रिन्सिपॉल)

मुख्याध्यापक (प्रिन्सिपॉल)

प्राध्यापक (प्रोफेसर)

परीक्षक (एक्झामिनर)

शस्त्रसंधी (सिसफायर)

टपाल (पोस्ट)

तारण (मॉर्गेज)

संचलन (परेड)

गतिमान

नेतृत्व (लिडरशीप)

सेवानिवृत्त (रिटायर)

वेतन (पगार)

असे शेकडो शब्द स्वातंत्र्यवीर सावरकरांनी मराठी भाषेला दिले आहेत. असं 
असलं तरी, परभाषेबद्दल त्यांच्या मनात द्वेष नव्हता. फक्त कुठलीही भाषा शुद्ध असावी, इतकंच त्यांचं म्हणणं होतं आणि म्हणूनच त्यांनी भाषाशुद्धीचा आग्रह धरला. मराठी भाषेतलं त्यांचं हे योगदान निश्चितच अतुलनीय आहे. त्यांना अभिप्रेत असलेल्या भाषाशुद्धीची आजही खरंच गरज आहे.



पारतंत्र्याचे आभाळ दाटले, अंधार चोहिकडे झाला,

भगुर गावी 'सूर्य' जन्मला, प्रकाश देण्या ह्या भारतभूमीला....

इतिहासाची जाण दिली तू, कवितेचे वाण दिले तू, अवघ्या जनसागरा,

प्रणाम माझा तुला, हिंदूहृदयसम्राट वीर सावरकरा.....!!



सूर्याची उबदार प्रखरता, वाऱ्याचा वेग, खडकाने हेवा करावा इतकी कठोरता आणि साक्षात बृहस्पतीने शिष्यत्व पत्करावं इतकी बुद्धीची प्रगल्भता या सर्वांनी धारण केलेला मानवी अवतार म्हणजे तात्याराव सावरकर!




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